Tuesday, March 1, 2016

नया मंदिर, नया महादेव


नया मंदिर, नया महादेव

विनोबा


एक मठवाले भाई पूछ रहे थे कि हमें किस प्रकार की सेवा करनी चाहिए ? मैंने उन्हें जवाब दिया कि अपने बाप-दादाओं को याद करो। रामानुज, रामानंद, तुलसीदास ने क्या किया ? वे लोगों की सेवा में लगे रहे, इसलिए लोग उनके वश में हुए। लोगों को उनके प्रति श्रद्धा पैदा हुई और उनके लिए मठ बने। ये मठ उनकी सेवा के सबूत हैं। इस समय जो मठपति हैं, उनके पास सेवाधर्म नहीं रह गया है। मठवालों के पास कुछ थोड़ी-सी जमीन होती है। उसके कारण जगह-जगह झगड़े चलते हैं। अदालत में जाते हैं। इसे आप क्या कहेंगे ? हिंदूधर्म की इज्जत इसलिए है कि उसने पुराने जमाने में त्याग-तपस्या की थी। आज नयी तपस्या नहीं हो रही है। पुरानी पूंजी के बल पर यह व्यवहार कब तक चलेगा ? अब सभी धर्मवालों की कसौटी होने वाली है। हिंदू, इस्लाम, ईसाई, बौद्ध, जैन आदि सारे धर्म वसिष्ठ, विश्वामित्र, पैगंबर, खलीफा, ईसामसीह, बुद्ध महावीर आदि के नाम पर जी रहे हैं। लेकिन अब और कितने दिन जी सकेंगे ? अगर ये धर्मवाले नयी तपस्या नहीं करेंगे, तो इस जमाने में खत्म हो जाएंगे। हर जमाने में तीर्थयात्रा के स्थान बदलते हैं और देवता भी बदलते हैं। मत्स्य, वराह अवतार पुराने हो गए। अब उन अवतारों की कोई पूजा नहीं करता है, परंतु अब नये अवतार रामचंद्र, कृष्ण आदि की पूजा होती है। पहले इंद्र, वरुण आदि नाम सुनने में आते थे। अब उन नामों को कोई याद नहीं करता। आज तो रामजी का नाम चलता है, कृष्ण का नाम चलता है। इस तरह जब जमाना बदलता है, तो लोगों के विचारों में भी फरक पड़ता है, देवता भी बदलते हैं, उपासना भी बदलती है और तीर्थयात्रा के स्थान भी बदलते हैं। बीच के जमाने में लोग मूर्तियों की पूजा करते थे और मूर्तियों के स्थान पर उस जमाने में तीर्थ बने हुए थे। कहीं रामेश्वर, कहीं जगन्नाथ, कहीं काशी, कहीं द्वारका, ऐसे सारे मूर्तियों के स्थान बड़े मशहूर थे। परंतु वह मूर्तिपूजा का जमाना अब बदल रहा है। अब मानव समाज के रूप में भगवान की पूजा और सेवा करने का नया जमाना आया है। वह ध्यान करने का युग था, तब यह सेवा करने का, कर्मयोग करने का युग आया है। अब यह जमाना आया है कि जब हम यह पहचानें कि हमारे आसपास के लोगों में, पड़ोसी लोगों में जो गरीब लोग हैं, उनकी सेवा करना हमारे लिए भगवान की भक्ति का साधन है। दुखियों की सेवा, अनाथों की सेवा, भूखों की सेवा, यह भगवान की ही सेवा है, यह सर्वोत्तम सेवा है। यह सेवाकार्य निस्वार्थ बुद्धि से, निष्काम भावना से, निरहंकार होकर यदि हम करते हैं, तो वह भगवान की सर्वोत्तम भक्ति होती है। और ऐसी सेवा करने की जहां कोशिश होती है, वह हमारे लिए इस जमाने में यात्रा के स्थान माने जाएंगे। आज के युग का धर्म है ग्राम-मंदिर के इर्द-गिर्द ऐसी धर्मभावना इकट्ठी हो। अपना गांव ही एक भगवान का मंदिर है, ऐसा समझ करके हमें उसकी भक्ति करनी चाहिए, उस मंदिर के लिए अपना सर्वस्व अर्पण करना चाहिए। यह धर्म-विचार हम समझाना चाहते हैं।
-विनोबा साहित्य: खंड 19

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